भारतीय खगोल भौतिक विज्ञानी डॉ. जयंत नार्लीकर (सोशल मीडिया से)
भारतीय खगोल भौतिक विज्ञानी डॉ. जयंत नार्लीकर: 20 मई, 2025 को जब भारत जाग रहा था, तब पुणे में विज्ञान के एक महानायक ने अंतिम सांस ली। 87 वर्ष की आयु में, डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का निधन हुआ। वे न केवल एक वैज्ञानिक थे, बल्कि विज्ञान को आम जनता तक पहुँचाने वाले प्रेरणादायक व्यक्तित्वों में से एक थे। उन्होंने विज्ञान को किताबों से बाहर निकालकर लोगों की सोच और जिज्ञासा का हिस्सा बना दिया।
डॉ. नार्लीकर का प्रारंभिक जीवन: प्रतिभा की पहचान
डॉ. जयंत नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई, 1938 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ। वे एक ऐसे परिवार में पले-बढ़े जहाँ शिक्षा और विज्ञान का गहरा महत्व था। उनके पिता, प्रोफेसर विष्णु वासुदेव नार्लीकर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित के प्रमुख थे। इस अकादमिक माहौल ने उन्हें प्रारंभिक उम्र से ही गणित और खगोल विज्ञान की ओर प्रेरित किया।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा: अंतरराष्ट्रीय पहचान की ओर पहला कदम
उच्च शिक्षा के लिए, डॉ. नार्लीकर ने इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने प्रसिद्ध गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी फ्रेड हॉयल के साथ काम किया। उनके मार्गदर्शन में, उन्होंने "स्टेडी स्टेट थ्योरी" पर शोध किया, जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है। कैम्ब्रिज में, उन्होंने Smith’s Prize और Wrangler's Honours जैसे पुरस्कार जीते, जो उनकी शैक्षणिक क्षमता का प्रमाण हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और योगदान
डॉ. नार्लीकर का वैज्ञानिक दृष्टिकोण पारंपरिक सोच से अलग था। उन्होंने हॉयल-नार्लीकर सिद्धांत सहित कई वैकल्पिक ब्रह्मांड सिद्धांतों पर काम किया, जो जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी से अलग ब्रह्मांड के व्यवहार को समझाने का प्रयास करते थे। उन्होंने क्वासी स्टेडी स्टेट मॉडल (QSSC) का प्रस्ताव रखा, जो ब्रह्मांड की निरंतर सृजनशीलता को दर्शाता है।
विज्ञान का लोकप्रियकरण: आम आदमी के वैज्ञानिक
डॉ. नार्लीकर ने विज्ञान को केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रखा। उनका मानना था कि जब तक आम लोग विज्ञान को नहीं समझेंगे, तब तक समाज का विकास संभव नहीं है। उन्होंने बच्चों और युवाओं के लिए कई विज्ञान पुस्तकें और कहानियाँ लिखीं, जिनमें "यात्री" और "ब्रह्मांडाची जन्मकथा" शामिल हैं।
सम्मान और पुरस्कार: श्रद्धांजलि
- डॉ. नार्लीकर को भारत सरकार ने पद्म भूषण (1965) और पद्म विभूषण (2004) जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा।
- वे थर्ड वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेस (TWAS) के सदस्य रहे और 2012 में उन्हें "विज्ञान में उत्कृष्टता" के लिए TWAS पुरस्कार मिला।
उनकी उपलब्धियों के कारण उन्हें विश्वभर के विश्वविद्यालयों से आमंत्रण मिलते थे, लेकिन उन्होंने हमेशा भारत में रहकर काम करने को प्राथमिकता दी।
व्यक्तित्व की विनम्रता और अनुशासन
डॉ. नार्लीकर न केवल एक महान वैज्ञानिक थे, बल्कि एक विनम्र और सहज व्यक्ति भी थे। वे छात्रों के साथ संवाद करने में कभी संकोच नहीं करते थे। चाहे वह गांव का स्कूल हो या अंतरराष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन, वे हमेशा उत्साह से भाग लेते थे। उनका जीवन व्यक्तिगत अनुशासन, वैज्ञानिक जिज्ञासा और सामाजिक जिम्मेदारी का अद्भुत उदाहरण था।
जयंत नार्लीकर का निधन: एक युग का अंत
20 मई, 2025 को पुणे में अपने निवास पर, डॉ. जयंत नार्लीकर का निधन हो गया। हाल ही में उनकी कूल्हे की सर्जरी हुई थी। भारत ने एक ऐसा वैज्ञानिक खो दिया है जिसने न केवल ब्रह्मांड की जटिलताओं को समझाया, बल्कि बच्चों को तारे गिनना भी सिखाया। उनका जाना केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि भारतीय विज्ञान के एक युग का अंत है।
प्रेरणा का स्रोत: डॉ. नार्लीकर का व्यक्तित्व
डॉ. जयंत नार्लीकर ने खगोल भौतिकी को नई दिशा दी और विज्ञान को सांस्कृतिक चेतना के रूप में स्थापित किया। उन्होंने एक पूरी पीढ़ी को तारों से बात करना सिखाया। उनके शब्द आज भी गूंजते हैं, "विज्ञान केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है, यह जीवन जीने का तरीका है।" भारत उन्हें हमेशा एक ज्ञानयोगी के रूप में याद रखेगा।
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